Bhool Chuk Maaf Review: ओटीटी पर रिलीज हो जाती तो ही अच्छा होता, जो भी इसे देखने थियेटर आया, उसकी भूल चूक माफ

काशी सत्य की नगरी है। महादेव अपने लोक से इसकी सतत निगरानी करते हैं। अभिवादन भी यहां महादेव है। प्रणाम भी महादेव है। जीवन भी महादेव और मृत्यु तो महादेव है ही। ऐसी काशी नगरी की गलियों के मुंबई के किसी स्टूडियो में बने सेट्स में रची गई है निर्देशक करण शर्मा की फिल्म ‘भूल चूक माफ’। फिल्म के पूरे प्रचार में कहीं से ये पता नहीं चलता कि ये उत्तर प्रदेश के किन्हीं दो ऐसे ब्राह्मण परिवारों की कहानी है, जहां के एक पंडित जी इतवार के दिन छत पर बैठकर अपना अलग स्टोव लेकर ‘खीर’ पकाते हैं और उसमें लौंग का तड़का भी लगाते हैं। उनका बेटा गाय को रोटी नहीं ‘पूरनपोली’ (महाराष्ट्र का व्यंजन) खिलाने की बात करता है। बनारस में पला बढ़ा 40 साल की उम्र में 25-26 साल की दिखने की कोशिश कर रहा ये बेटा उत्तर प्रदेश में रिश्वत देकर सरकारी नौकरी पाने में कामयाब है। और, काशी में ही ये सारा रिश्वत खाकर सरकारी नौकरी देने का धंधा चल रहा है। समझ रहे हैं ना, निगाहें कहां हैं और निशाना कहां है.